Oil Diplomacy : तेल पर चलेगा अमेरिका का डंडा या भारत की कूटनीति?

अब अमेरिका का प्लान सिर्फ रूस की कमर तोड़ना नहीं है। असली मकसद यह भी है कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे बड़े ग्राहक रूस से दूर हो जाएं

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Will America's stick or India's diplomacy prevail on oil?

कूटनीति डेस्क/अजय कुमार रूस-यूक्रेन युद्ध को तीन साल होने को हैं, लेकिन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। अब ये सिर्फ यूरोप के दो देशों की जंग नहीं रही, बल्कि एक ऐसा शतरंज बन गई है जिसमें अमेरिका, नाटो, चीन और भारत जैसे बड़े खिलाड़ी भी अपनी-अपनी चाल चल रहे हैं। ताजा हालात में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और नाटो के महासचिव मार्क रुटे ने जिस तरह भारत समेत कई देशों को धमकाया है, उसने नई बहस छेड़ दी है कि क्या भारत अब भी रूस से सस्ता तेल खरीद पाएगा या नहीं। सबसे पहले अमेरिका का प्लान समझिए। अमेरिका में एक नया बिल ‘सैंक्शनिंग रशिया एक्ट ऑफ 2025’ लाया गया है, जिसके तहत जो देश रूस से तेल, गैस या यूरेनियम खरीदते रहेंगे, उन पर अमेरिका में अपने सामान के निर्यात पर 500% तक का टैक्स लगाया जाएगा। मतलब साफ है  रूस से तेल लो और अमेरिका को अपने सामान मत बेचो। ये सीधी धमकी भारत जैसे देशों को दी गई है, जो अब भी रूस से कच्चा तेल खरीद रहे हैं।

भारत के लिए यह कोई छोटी बात नहीं। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। 2021 में भारत रूस से अपनी जरूरत का सिर्फ 1% तेल लेता था, लेकिन यूक्रेन युद्ध शुरू होते ही रूस ने एशियाई देशों को सस्ता तेल ऑफर किया और भारत ने इसका फायदा उठाया। आज भारत अपनी जरूरत का करीब 35% तेल रूस से ले रहा है। इससे भारत को सीधे दो फायदे हुए  पेट्रोल-डीजल की कीमत काबू में रहीं और डॉलर में भुगतान की वजह से विदेशी मुद्रा भंडार पर भी ज्यादा दबाव नहीं पड़ा।लेकिन अब अमेरिका कह रहा है कि या तो रूस से दूरी बना लो या फिर भारी सेकंडरी टैरिफ झेलो। ट्रंप ने रूस को 50 दिन का अल्टीमेटम दिया है कि अगर पुतिन ने युद्ध नहीं रोका तो न सिर्फ रूस बल्कि उसके दोस्तों पर भी सजा बरसेगी। नाटो चीफ मार्क रुटे ने तो दिल्ली, बीजिंग और ब्राजीलिया को सीधा नाम लेकर चेतावनी दे दी  अगर पुतिन को नहीं मनाओगे तो ये झटका सीधे तुम पर पड़ेगा।

अब सवाल है क्या भारत डर जाएगा? अभी तक के संकेत तो यही बताते हैं कि भारत फिलहाल कोई जल्दीबाज़ी में फैसला नहीं लेने वाला। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कहा कि भारत किसी एक देश के कहने पर अपनी एनर्जी पॉलिसी नहीं बदलेगा पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने भी अमेरिका को करारा जवाब दिया  अगर भारत रूस से सस्ता तेल नहीं खरीदता तो पूरी दुनिया में तेल की कीमतें 120-130 डॉलर प्रति बैरल पहुंच जातीं, जिससे यूरोप और अमेरिका की जनता भी महंगाई से कराह उठती।पुरी की इस बात में दम है, क्योंकि रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादक देश है। अगर उसे ग्लोबल मार्केट से हटा दिया जाए तो सप्लाई में करीब 10% की कमी आ जाएगी। इसका मतलब  पेट्रोल-डीजल इतना महंगा होगा कि भारत से लेकर यूरोप-अमेरिका तक आम आदमी परेशान हो जाएगा।

अब अमेरिका का प्लान सिर्फ रूस की कमर तोड़ना नहीं है। असली मकसद यह भी है कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे बड़े ग्राहक रूस से दूर हो जाएं ताकि पुतिन पर दबाव पड़े। लेकिन ये इतना आसान नहीं है। भारत ने रूस के अलावा मिडिल ईस्ट के देशों से भी डील कर रखी है, ताकि अगर कभी रूस से सप्लाई रोकी जाए तो सऊदी अरब, यूएई जैसे देश तुरंत तेल की कमी पूरी कर सकें। पर इसमें दिक्कत ये है कि रूस का तेल बाकी सप्लायर्स से काफी सस्ता है। अगर भारत रूस से तेल लेना बंद करेगा तो उसकी जेब पर सीधा असर पड़ेगा। महंगाई बढ़ेगी, ट्रांसपोर्ट महंगा होगा, और आम आदमी की कमर टूटेगी।भारत के लिए दूसरी चुनौती उसके निर्यात को लेकर है। अमेरिका भारत के लिए सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। फार्मा, टेक्सटाइल, आईटी, ऑटो पार्ट्स  इन सबका बड़ा हिस्सा अमेरिका जाता है। अगर अमेरिका 500% टैक्स लगा देगा तो भारत के सामान की कीमत इतनी बढ़ जाएगी कि अमेरिकी कंपनियां और ग्राहक उसे खरीदना छोड़ देंगे। इससे करोड़ों लोगों की नौकरियां और देश की कमाई दोनों पर असर पड़ेगा।

अब ये भी देखिए कि ट्रंप इस बिल को क्यों आगे बढ़ा रहे हैं। दरअसल ट्रंप चाहते हैं कि रूस को दबाव में लाकर पुतिन को युद्धविराम पर मजबूर करें। इसके लिए वो भारत जैसे देशों को गले से पकड़ना चाहते हैं। लेकिन ट्रंप भी जानते हैं कि भारत को पूरी तरह मजबूर करना आसान नहीं है। क्योंकि भारत को अगर ज्यादा दबाया गया तो वो चीन या रूस के और करीब जा सकता है। इससे अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति को बड़ा झटका लगेगा। अमेरिका एशिया में चीन को रोकने के लिए भारत को अहम साझेदार मानता है। ऐसे में भारत को नाराज़ करना खुद अमेरिका के लिए घाटे का सौदा हो सकता है।इधर भारत भी चुपचाप नहीं बैठा है। मोदी सरकार पहले ही सऊदी अरब, यूएई और ब्राजील से अतिरिक्त सप्लाई पर बातचीत कर रही है। अगर कभी रूस से सप्लाई कम भी करनी पड़ी तो भारत के पास बैकअप प्लान रहेगा। लेकिन ये बैकअप प्लान भी महंगा पड़ेगा। क्योंकि मिडिल ईस्ट के देशों का तेल रूस जितना सस्ता नहीं है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत शायद सीधे तौर पर रूस से हाथ नहीं खींचेगा, लेकिन रूस पर अपनी निर्भरता थोड़ा घटा सकता है। मिडिल ईस्ट से थोड़ा ज्यादा तेल लेकर अमेरिका को यह दिखा सकता है कि उसने दबाव में कुछ ‘संतुलन’ किया है। लेकिन पूरी तरह रूस से दूरी फिलहाल नामुमकिन लगती है।रूस भी अपनी चालें चल रहा है। पुतिन ने साफ कर दिया है कि वो यूक्रेन में तब तक जंग जारी रखेंगे जब तक पश्चिम उनकी शर्तों पर शांति समझौते के लिए राज़ी नहीं होता। पुतिन जानते हैं कि भारत और चीन जैसे देशों के रहते उन पर लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंध पूरी तरह असर नहीं दिखा पाएंगे। यही वजह है कि रूस अब एशियाई बाजारों पर ज्यादा ध्यान दे रहा है और तेल-गैस के अलावा कोयला, खाद्यान्न और यूरेनियम के सौदे भी इन्हीं देशों के साथ कर रहा है।

अब सवाल  अगले 50 दिन में क्या होगा? क्या रूस युद्ध रोक देगा? क्या भारत को सच में 500% सेकंडरी टैरिफ झेलना पड़ेगा? या अमेरिका दबाव डालने के बाद पीछे हट जाएगा? फिलहाल ज्यादातर जानकार मानते हैं कि अमेरिका धमकी देकर सौदेबाज़ी करेगा। ट्रंप का मकसद यही है कि उसे राष्ट्रपति के हाथ में पूरा कंट्रोल मिले कि कब टैरिफ लगाना है और कब छूट देनी है। इससे वो भारत जैसे देशों को बातचीत की टेबल पर लाकर अपनी शर्तें मनवा सके।भारत के लिए यह वक्त बड़ा सावधानी से कदम उठाने का है। उसे एक तरफ रूस से सस्ता तेल चाहिए, ताकि महंगाई काबू में रहे, दूसरी तरफ अमेरिका से दोस्ती भी चाहिए ताकि निर्यात और रक्षा साझेदारी पर असर न पड़े। ऐसे में मोदी सरकार की कूटनीति अब असली अग्निपरीक्षा में है।एक बात साफ है  इस बार लड़ाई सिर्फ टैंक और मिसाइलों से नहीं लड़ी जा रही, असली जंग तेल और गैस पर है। दुनिया देख रही है कि भारत जैसे देश इस जंग में किसे चुनते हैं  सस्ती ऊर्जा या अमेरिकी बाजार। फिलहाल भारत ने इशारा दे दिया है कि उसका झुकाव अपनी जनता की भलाई की तरफ ही रहेगा। बाकी दुनिया को तय करना है कि वो इसे कैसे देखती है।

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